गहरा वो समंदर था,
या डूबता किनारा था।
मुँह फेरने की अदा थी वो
या कोई ईशारा था।
बेखुदी का मंजर वो
कितना खुशगवार हुआ।
कि चलते तीर तम्हारे थे
और चाक सीना हमारा था।
गहरा वो समंदर था,
या डूबता किनारा था।
मुँह फेरने की अदा थी वो
या कोई ईशारा था।
बेखुदी का मंजर वो
कितना खुशगवार हुआ।
कि चलते तीर तम्हारे थे
और चाक सीना हमारा था।
बेखुदी का मंजर वो
कितना खुशगवार हुआ।
कि चलते तीर तम्हारे थे
और चाक सीना हमारा था।
वाह।। क्या खूब कहा। बेहतरीन ।👌👌
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