मैं रोता हूँ।
किसी को जिन्दगी से हारा देखूँ तो,
किसी को अपने से हारा देखूँ तो,
मैं रोता हूँ।
संजोये किसीके सपने टूट जायेँ तो,
मन-से किसीके अपने छूट जायेँ तो,
मैं रोता हूँ।
आँखों मे चिंगारी हो,
रग-रग में आग हो,
बेसाख्ता हलचल हो,
बस आगे की दौड़-भाग हो,
एसे में किसी को बेफिक्र वापस जाता देखूँ तो,
और किसी गिरे अजनवी को उठाते देखूँ तो,
मैं रोता हूँ।
वजह नहीं पर ऐसा होता रहता है,
करता वही हूँ जो सही मन कहता है,
ऐसेमें कोई मुझे देख मुस्कुराये तो,
और धीरे-से मुझे सही बताये तो,
मैं रोता हूँ।
ऐसा कई बार हुआ है,
कि जिससे मिला हूँ उसने मुझे छुआ है।
उस स्पर्ष को लेकर आगे बढ गया हूँ,
तब नहीं कहा,अब अनकहा यह जमा पड़ा है।
कभी उनसे नजरें मिलाऊँ तो,
उन्होने मुझे बनाया है-बतलाऊँ तो,
मैं रोता हूँ।