खयाल रखता हूँ,पर बताना भूल जाता हूँ,
मानता हूँ, अपनी नजरें झुकाना भूल जाता हूँ।
है अच्छा लगता सुनता रहूँ जो औरों के किस्से,
कुछ बात है कि अपना फसाना भूल जाता हूँ।
तकल्लुफ हो नहीं पाता यारों अब मुझ से,
तसल्ली गहरी हो तो मुस्कुराना भूल जाता हूँ।
अदब के कायदे सारे यूँ मुझको भीआते हैँ,
पर जब वक्त आता है, बहाना भूल जाता हूँ।
सीखे हैं दोस्ती के गुर कुछ इस तरह हमनें,
सरे-जंग भी दुश्मनी निभाना भूल जाता हूँ।
ये जिद है कि कह देने से ये हल्का ना हो जाये,
किसीके लब पे अपना लहू दिखाना भूल जाता हूँ।
Bahut achhi kavita likhi hai apne ..very nice
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वाह
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