
पास आये गम तो
बुरा नहीं मानना।
आँखें हों नम तो
बुरा नहीं मानना।
सूखी आँखों ने जला डाले
ना जाने कितने मंजर,
कभी भींगे जो दामन तो
बुरा नहीं मानना।
उम्रभर चले आगे
साध औरों के होने,
पीछे जो अब लौटें कदम तो
बुरा नहीं मानना।
सुना है बाँटने से
कम होती नहीं कभी,
फिर भी कभी खुशियाँ लगै कम तो
बुरा नहीं मानना।
कभी आवाज आये
बहुत दूर से कहीं
और बेसाख्ता मुड़ै कदम तो
बुरा नहीं मानना।
अपनी सुनी,किया जो चाहा
फिर भी शिकवे बाकी है,
हो अपने से ऐसे अनबन तो
बुरा नहीं मानना।
थमने को और मुड़ने को
बुजदिली कहेंगे बेशक सब,
पर रफ्तार से कभी जो जाओ सहम तो
बुरा नहीं मानना।