कैसा गुजरा, वक्त जाने।
मैं जिया।
लिया दिया,
खोया पाया,
हँसा रोया,
बहुत कुछ है विस्म्रिति के भूतल में,
बहुत कुछ चिन्हित स्मृति पटल पे,
बहुत कुछ भूला, बहुत कुछ जाना,
पर हर क्षण में अपनी चेतना का स्पर्ष किया।
मैं जिया।
सकुचे शर्माये नहीं,
डरे घबड़ाये नहीं,
कीचड़ में पाँयचे उठाये नहीं,
लहू और पसीने से
अपने आपको बताये नहीं,
भीड़ में शामिल होके,
भँवर में दाखिल होके,
दूर-दूर तक अमृत को ढूँढा,
जरूरत हुई तो विष को भी पिया।
मैं जिया।
खुद को कभी खोया नहीं,
पैरों चला, अपने को ढोया नहीं,
जो किया, जो कहा,
उसका पूरा दायित्व लिया,
यह युद्ध नहीं था जीवन धा,
घाव सहे, सम्मान किया।
मैं जिया।
किससे सीखा, यह मत पूछो,
कब रहा अनछुआ याद नहीं,
सबके ऋण साँसों मे हैं,
कोई इसका अपवाद नहीं।.
अपनी शर्तों पर जीने वाला,
क्या दंभ करूँ कुछ देने का,
बस कोशिश की और ध्यान दिया,
सबको अपना-सा मान दिया।
कुछ ऐसे हीं मैं जिया।